पाठकों को बताना चाहेंगे कि मणिपुर हिंसा के चलते आदिवासी समुदाय के लोगो ने विशाल रैली निकाल शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करते हुए विश्व आदिवासी दिवस को मजबूरीवश काला दिवस के रूप में मनाया जिस बारे में आदिवासी समाज के बुद्धिजीवी लोगों में से कुछ ने जानकारी देकर बताया कि विगत 3 माह अंतर्गत मणिपुर जिला के कूकी आदिवासी समुदाय की 2 महिलाओं को मतेई समुदाय के लोगो ने बेपर्दा कर सरेआम परेड करा उक्त महिलाओं का गैंगरेप कर मानवता को शर्मसार कर दिया इतना ही नहीं सैकड़ों की तादाद में बेगुनाह लोगों को गोली मार कर मौत के घाट उतार कर उनके घरों सहित उनकी सम्पत्ति तक को आग के हवाले कर उनका सब कुछ नष्ट कर दिया उक्त घटना ने पुरे देश वासियों को झकझोर कर रख दी उक्त वायरल विडियो को जो कोई देखा वो बेकाबू हो कर पुलिस सहित सरकार को हिजड़ा शब्द से संबोधित किया कारण कि इधर हिंसा की आग में मणिपुर जल रहा था।और उधर सरकार अंजान बने विदेश भ्रमण का मजा ले रही थी।ऐसे में कौन देशवासी है जिसे क्रोध न आये हिजड़ा शब्द तो कम लोगों ने सरकार को विभिन्न प्रकार की गालियों की बौछार लगा सरकार पर कई तरह के सवाल भी उठाये लेकिन जनता के सवालों का जवाब न देकर सरकार चुप्पी साधे पत्थर की मूरत बने खड़ी थी। उक्त घटना किस वजह से हुई उसका कारण क्या था सवाल करने पर उक्त आदिवासी समाज के बुद्धिजीवी व्यक्तियो ने विस्तार पूर्वक जानकारी देकर बताया कि मणिपुर में मेतई समुदाय के 60% प्रतिशत लोग रहते हैं।और कूकी आदिवासी समुदाय के 40% प्रतिशत लोग पहले सभी मिल जुल कर रहा करते थे उनके बीच कोई मतभेद नहीं था सरकार के द्वारा ही आदिवासियों की जमीन के चलते उनके बीच जहर घोल मतभेद पैदा कर हिसा भड़कवाकर आज मणिपुर जिला को आग में झोंक दिया कारण कि सरकार को नये प्रोजेक्ट के लिए जमीन की जरूरत थी लेकिन मुसलमानों और ईसाईयों के पास जमीन नहीं है।तो सरकार किस्से लड़ेगी उक्त मामला जमीन का ही था सरकार की मंशा यह थी कि आदिवासियों की जमीन विदेशी कंपनियों सहित प्रायवेट सेक्टर के लोगों व्यापारियों को लीज में दे कर लैंड बैंक बना कर अधिक से अधिक पैसा कमा सके और जो आदिवासी उक्त जमीन के मालिक हैं।वे बदले में डबलामेट करने अपने ही जमीन में नौकर बनकर झाड़ लगाने का काम करें ।गौर करने वाली बात है कि भारत के पास जितनी जमीन नहीं है उतनी जमीन 5 वी अनुसूची और 6वी अनुसूची में है। वहीं संविधान के प्रावधानों के तहत् आदिवासियों के पास अधिक जमीन है।अगर संविधान की बात करें तो विश्वभर के किसी भी देश में संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जैसा प्रावधान भारत के संविधान में आदिवासियों के लिए है ।जिसमें आदिवासियों की जमीन पर किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं कर सकते ,और उससे भी बड़ा प्रावधान ये है कि आदिवासियों के जमीन का संसोधन भी नहीं कर सकते और आदिवासियों के अधिकारों में भी संसोधन नहीं कर सकते इसके बावजूद सरकार संविधान के प्रावधानों को दरकिनार कर मनमाने तरीके से आदिवासियों का शोषण कर रही एक अहम बात तो यह भी सामने आई है कि भारत के इतिहास में कभी यह बात बिल में और न किसी एक्ट कानून में पारित की गई कि आदिवासी क्षेत्रों में अर्ध सैनिक बल (पैरामिलिट्री फोर्स)तैनात किये जायेंगे जबकि अर्ध सैनिक बल चाइना और पाकिस्तान के बार्डर में तैनात किये जाने का प्रावधान हैं।लेकिन संसद में जब आदिवासी क्षेत्रों में अर्ध सैनिक बल तैनात किये जाने प्रस्ताव प्रस्तुत कराया जा रहा था जो लोकसभा में पास हो कर राज्य सभा से भी पास हो कर राष्ट्रपति के पास जाकर कानून पारित हो जायेगा तब आदिवासियों को 2 से 3 एकड़ तक का जो वन अधिकार मिलता था उससे उन्हें वंचित कर दिया जायेगा जब षणयंत्र पुर्वक आदिवासियों के जिंदगी का सौदा किया जा रहा था उक्त दौरान आदिवासी नेता और विपक्ष जो अपने को आदिवासियों का हितैषी बताने वालों के मुंह में दही जम गया था जो चुप्पी साधे आदिवासियों के जिंदगी का सौदा होते पांडु की तरह देख रहे थे।यह एक कटु सत्य है। उक्त बात देशवासियों को शायद मालूम नहीं इसके आगे उन्होंने यह भी बताया कि सरकार मणिपुर हिंसा के विषय में विदेशो में बोलती है कि आदिवासी के दो समुदायों का झगड़ा है ।यह नहीं बताती कि आदिवासियों के जमीन के चलते हिंसा भड़की है । जहां क्रिस्चनो को मारा गया हथियारो के विषय में भी सरकार सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र प्रस्तुत कर बताती है कि लोगों ने मिलिट्री से 400 AK-47 बंदुकें और 60 हजार गोलियां छीन ली है ।जबकि मिलिट्री ऐसी है कि जरा सी हरकत होने पर सीधे सुट कर देती है।और सरकार बात कर रही लोगों ने हथियार लूट लिया मिलिट्री से ???जैसे मिलिट्री कोई दुध पीता बच्चा हो?? इस तरह सरकार द्वारा पेश की गई शपथ पत्र की बातें देशवासियों को हजम नहीं हो रही वही समान नागरिक कानून के विषय में भी उन्होंने बताया कि सरकार समान नागरिक कानून क्यों लाना चाहती है कारण कि जब से obc समुदायो के द्वारा जाति के आधार पर चुनाव की मांग किये जाने से सरकारों की कुर्सी हिल गई उक्त वजह से सरकार समान नागरिक कानून लाना चाहती है। और यू.सी.सी याने यूनिफार्म सिविल कोड भी लेकिन अब आदिवासी समुदाय जो पूरी तरह जागरूक हो चूका है।अब सरकार के झांसे में फंसने वाला नहीं है
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